
मेरी खिड़की के बाहर एक पेड़ दिखता है,
कहते हैं यह ताड़ का पेड़ है,
मैंने इसे एक प्यारा सा नाम दे रखा है,
नाम क्यों दिया है?
अब दिया है तो है।
मैं उससे कई बातें करती हूँ,
कभी-कभी सुख-दुःख भी बांट लेती हूँ,
उसे देख कर सुकून मिलता है,
मानो वो मेरी हर बात सुनता है,
सुकून कैसे मिलता है?
अब मिलता है तो है।
सुबह-सुबह उसे खिड़की के बाहर देखना अच्छा लगता है,
पर अंधेरे में उसी खिड़की से बाहर देखूँ तो डर लगता है,
डर सबको नही लगता,
मुझे तो लगता है,
अब डर लगता है तो है।
मैंने उसे बोया नही,
बोया तो किसी और ने था,
मैंने तो सिर्फ उसे पाया है,
पर ऐसा लगता है जैसे बरसों से जाना है,
ऐसे कैसे जाना है?
अब जाना है तो है।
उससे मुझे कोई छाँव नही मिलती, पर
उसका जैसे साथ मिलता है,
छाँव की कोई आशा नही है,
पर साथ है तो है।
वह सिर्फ पेड़ है, दोस्त है, या सुकून है ?
कुछ भी न होते हुए भी वो बहुत कुछ है,
कैसे इतना कुछ है?
अब वो है तो है।
–The Chubby Little Girl.
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